28 फ़रवरी 2010

"सरहदों की विरासत"

आज भारत और पकिस्तान का वर्ल्ड कप हॉकी मैच है | सारे भारतीयों की तरह, मेरे मन में भी यह भावना है कि हम इस मैच में पकिस्तान को बुरी तरह पीटें | मुझे पूरा यकीन है कि यही हाल, उधर पाकिस्तानियों का भी होगा| आज रात को हम सभी हाकी की बाल को बम और विरोधी गोल पोस्ट को उसका मुल्क समझ रहे होँगे | दोनों देशों के वो सारे शख्स भी, जिन्हें  हॉकी के खेल में रत्ती भर भी लगाव नहीं है, मैच ख़त्म होने तक परेशान  घूमते रहेंगे | मैच ख़त्म होने पर, जंग हारने जीतने का सा अफ़सोस रहेगा या फिर जश्न मनेंगे | इधर थोड़े कम और उधर बहुत ज्यादा |
 
यह सिर्फ आज ही की बात नहीं है, यह रवैया मैं अपने बचपन से देख रहा हूँ | मेरे अपने ४२ साल के जीवन में, कम से कम पिछले ३५ सालों का मुझे होश है..और इन होश के सालों में मुझे  याद नहीं, पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच कभी भी रिश्ते, सामान्य रहे हों | हाँ इतना ज़रूर है कि बहुत ज्यादा खराब समय के बीच, जो समय थोड़ा कम ख़राब रहा था,  उसे हम मन रखने को सामान्य कह सकते हैं |
मुझे बचपन का वो वक्त भी याद है, जब लखनऊ में हम दोस्त लोग, टोइलेट को पकिस्तान कहा करते थे और खूब हँसते थे | हालाँकि ये कोई गर्व की बात नहीं है और हमको भी इस बात का इल्म नहीं था कि हम या हमारे जैसे दूसरे  बच्चे, आखिर ऐसा क्यों कहते थे | या तो हमने, अपने बड़ो को कभी ये कहते सुना होगा या कहीं हम में ये बात डाली गयी होगी कि पाकिस्तान किसी बेहद ख़राब जगह का नाम है | उस वक्त का मज़ाक, आज मुझे थोड़ी   तकलीफ  पहुंचाता  है क्योंकि हम किसी देश का अपमान कर रहे थे ...उस हिस्से का अपमान कर रहे थे जो कल तक हमारा ही हिस्सा था...जहाँ हम जैसे दिखने वाले, हम जैसी ही ज़बान वाले ...और शायद हम जैसी तहज़ीब वाले ही लोग रहते हैं |


मेरे लिए ये बात ज्यादा दुखदायी इसलिए भी है कि मेरे पिताजी लाहौर में जन्मे थे और वहीं के दयानंद अंग्लो वैदिक कॉलेज के पड़े हुए हैं| बंटवारे के समय में लुट पिट कर, अपना सब कुछ गवां कर, मेरे दादाजी अपने परिवार के साथ कानपूर आये  और फिर कुछ सालों बाद वहां से लखनऊ |
उन सभी के दर्द और पीड़ाएं  मुझे किस्सों और दास्तानों के जरिये विरासत में मिली है | साथ साथ मिली है, कड़वाहट की  डोज़ भी, जो ज़रूर उनके साथ कई विश्वासघातों  और चारों तरफ के खून ख़राबों कि वजह से थी |


आज, हमको ये कड़वाहट  विरासत में देने की ज़रुरत नहीं पड़ रही है क्योंकि अब इस के पेड़ पर नफरत के ढेर सारे फल आ गए हैं| हमारे बच्चे रोज़ दहशत के इतने कारनामे देख रहे हैं कि ये खेती अब लगता नहीं, कभी ख़त्म भी  होगी |
ये, हर तरह से हम दोनों देशों का ही दुर्भाग्य होगा | हमारा इसलिए, कि हम हमेशा मुंह कड़वा किये ,दिमाग में शक लिए चैन की सांस नहीं ले पाएंगे और उनका इसलिए कि वो हमें तबाह करते करते, खुद तबाह और बर्बाद हो जायेंगे |


मैं ये अच्छी तरह से समझता हूँ कि वहां का आम नागरिक, अपने देश में हो  रही  बर्बादी और नुक्सान से  हताश  हो  चुका है | वो बेचारा भी हमारी ही तरह रोज़ी रोटी ,परिवार , सुरक्षा अदि के ताने बने में उलझा हुआ है और यह गोली बारी और बमों के धमाके, जो उसके चारों तरफ हर वक्त हो रहे हैं,  उसके देश की अर्थ व्यवस्था की तरह उसकी उम्मीदों की कमर भी तोड़ चुके हैं | इन सब का कारण वो ख़ुद नहीं, उसके देश के कुछ मुट्ठी भर लोग हैं जिनकी तारीफ में अगर, मैं कुछ ना ही लिखूं तो बेहतर है |


मुझे, उनके देश और आस पास के उन सारे देशों और उनके लोगों के लिए दुःख और हमदर्दी है जो इस तरह के हालात के शिकार हैं | वो शायद हर रोज़, हर पल, एक नरक जी रहें होँगे |
यह बात समझते हुए भी, मेरी पहली चिंता मेरा अपना देश है, मेरे अपने लोग हैं,और मैं  खुद हूँ  | वो देश, जिसने कभी किसी का बुरा नहीं सोचा, न किया और जो लगातार इन साजिशों  और हमलों का शिकार बनता आया है | अमन की हमारी सारी कोशिशों का सिला, अब तक सिर्फ विश्वासघात और निराशा ही रहा है |


मेरी यह तमन्ना है, कि कभी एक बार लाहौर जाकर एक बार वो जगह देखूं, जहाँ मेरे परिवार के लोग रहा करते थे| साथ ही साथ, मैं  यह  चाहता हूँ कि यह तमन्ना तब  पूरी  करूँ , जब  वहां के लोग, शासन  तंत्र , मीडिया और फ़ौज, न सिर्फ दोस्ती की बात करें बल्कि  दोस्ती के सही मायने समझें और इसे अमल का जामा पहनाएं | मैं ये भी अच्छी तरह जानता हूँ, कि यह बेहद - बेहद मुश्किल काम है|  आसान होता, तो कब का  हो गया होता | जब तक एक सकारात्मक,खुले दिमाग और अमनपसंद सोच के लोग  दोनों देशों में हैं, जैसा की मैं मानता हूँ कि बहुतायत में हैं, तब तक इसकी उम्मीद कायम है | इनकी गिनती में इजाफ़ा करने की कोशिश, यहाँ भी हो रही है और शायद वहां भी | अपनी कविताओं और लेखों से, इनमें अगर मैं एक आदमी के भी गिनती बढ़ा पाया तो मेरे लिए एक बड़ी बात होगी | 

अब देखना ये है, कि मैं इस सपने को अपने जीवन में पूरा कर पाता हूँ, या इसे भी विरासत की तरह किसी कड़वाहट  के कफ़न में लपेट कर छोड़ जाता हूँ ,अपने बच्चों और आगे अपनी आने वाली नस्लों के लिए | अपने बाप दादा की ही तरह |


     

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