11 अप्रैल 2010

"टूटता सितारा"



देखा था बैठे बैठे
एक टूटता सितारा
कल रात छत पे यूंही
चाँद तकते तकते

दुआ में फिर अपनी
मांग लिया था कुछ
उस पल को भींच कर
पलकों में बंद करके

ख्याल छोटा सा इक 
युहीं ज़ेहन में आया
क्यों बुझ गया भला ये
 नूर जलते जलते

तारों ने क्या इसे खुद
है फ़लक से निकाला
या गिर पड़ा है थक के
सदियों से चलते चलते

देखा था बैठे बैठे
एक टूटता सितारा
कल रात छत पे यूंही
चाँद तकते तकते।

- योगेश शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा!! थक ही गया होगा...तारे इन्सान नहीं कि अपनों को ही अपनी बस्ती से निकाल दें.

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  2. बहुत अच्छे, तारे के टूटने पर सब लोग कुछ न कुछ माँगते हैं पहली बार किसी ने टूटते तारे के बारे में भी सोचा......"

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  3. ham bhi kitne swarthi hain koi marta hai ham dua maang lete hain....

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  4. Sameer ji, Pranav bhai aur Dilip ji, aap sabhee ne is kavita ki paridhi apne vichaaron se aur badhaa dee hai..... Shukriyaa,

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