25 अप्रैल 2010

'चाहता था तू जिसे'



चाहता था तू जिसे,
अगर वो  नहीं मिला,
फिर  बेरुखी से तेरी,
हमें कोई नहीं गिला,


तेरे जाने की सज़ा,
यूँ  दी अपने आप को
जब से जुदा है तू,
मैं ख़ुद से नहीं मिला,


 
बदकिस्मती का, सर पे,
हमेशा रहा है हाथ,
ख़ुद को भी खो दिया,
तू भी नहीं  मिला,


ये सिर्फ रौशनी है,
न इन्हें सुबह कहो,
रहे आफ़ताब में,
उजाले कहाँ भला |

- योगेश शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. waah sir aapki tareef me to shabd kam pad jaate hain...

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  2. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

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  3. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई..

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  4. Dilip bhai ,Sanjay ji , Bali sahab aap sabhi kaa aabhar. Dilip bhai sudhaar ho raha hai naa...yoon hee protsaahit karte rahain. Shukriyaa

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