23 मई 2010

'तन्हाई के सहारे'

(पुनः संपादित )
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अपनी तन्हाई में पर्दों के ही सहारे हैं
देखते जिनको ये सारे दिन गुज़ारे हैं

हिलाएं इनको हवाओं के झोंके जब जब
ऐसा लगे घर में लोग सारे हैं

दीवार से घड़ियाँ उतार कर रख दीं
वक्त से रिश्ते रहे न अब हमारे हैं

प्यास थी बस हाथ ना बढ़ा पाए
यूं तो रहते यहीं दरिया किनारे हैं

पुराना चाँद वोही और सितारे मुट्ठी भर
अब यही रिश्तेदार सारे हैं |

- योगेश शर्मा

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी23/5/10 12:14 pm

    bahut khub......
    achhi rachna ban padi hai...
    achha laga padhkar........
    meri nayi kavita bhi jaroor padhein..
    tippani ka intzaar rahega......

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  2. aapki vaapsi pe badi prasannta hui...miss kiya aapki rachnaao ko...प्यास थी, सिर्फ हाथ ना बढ़ा पाए,
    यूं तो, रहते दरिया किनारे हैं,
    ye sher bahut sundar laga...

    जवाब देंहटाएं

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