03 मई 2010

"सपनों की दुनिया"



दूर पर ज़मीं जहाँ
आस्मां से मिलती है
जिस जगह खुशियाँ सभी
क्यारियों में खिलती है

कदम कदम पे इन्द्रधनुष
रौशनी लुटाते हैं
हर तरफ बस मुस्कुराते
चेहरे ही नज़र आते हैं

काश एक ही दिन को
मैं भी वहां जा पाता
उस रौशनी की बारिश में
मैं भी गर नहा पाता

जो अग़र ना जा पाता
हाथ ही बढ़ा सकता
खींच कर वहां से कुछ
रोटियां ही ला सकता

थोड़ी ख़ुद को दे देता
थोड़ी किसी अपने को
और पूरा कर लेता
एक वक्त के सपने को

खा के रोटियाँ फिर इक 
जाम पानी का पीता
आँखें अपनी बन्द कर के
गीत कोई गुनगुनाता

यूं ही गाते गाते बस
कुछ पलों में सो जाता
और उसी दुनिया के
सपनों में फ़िर खो जाता|


                                                    



    
  - योगेश शर्मा

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन कविता... ऐसा लगा मानो एक पल के लिए हम भी विचारों के सागर में गोते लगा आए...

    बहुत सुन्दर...

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  2. aaj mann udaas thaa.....baar-baar padha aapki kavita ko....mann ko sukoon mil gaya.

    Sundar rachna

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  3. बेनामी3/5/10 9:58 pm

    "थोड़ी,
    ख़ुद को दे देता,
    थोड़ी,
    किसी अपने को,
    और पूरा कर लेता,
    एक वक्त के सपने को,"
    शब्द और भाव प्रशंसनीय - यही सोच बनी रहे - शुभकामनाएं

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  4. उस रौशनी की बारिश से रोटियां ही ला पाता ...
    और पूरा कर लेता एक वक़्त के सपने को ...
    अपने साथ दूसरों के सुख के लिए भी सोचना ...जीना इसी का नाम है ...!!

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