08 मई 2010

'हाय जवानी...तू कहाँ '













बदली शक्ल  या नज़रें ही,
आईने की कमज़ोर हैं,
रंग फीका हो गया,
या माजरा कुछ और है,  
 
वो रौनकें वो रंग,
वो चेहरे कि लाली है कहाँ,
अन्धेरा है कमरे में या,
बढ़ती उम्र का ज़ोर है


ये आँख के कोनों में कब,
टेढ़ी  लकीरें खिंच गयीं,
माथे पे कैसी सिलवटें,
मैं हूँ या कोई और है

ढीले से कपड़े  मेरे,
ख़ुद तंग कैसे हो गए,
किसकी है ये सब साजिशें,
करना अब इसपे गौर है











जिस जगह से जुल्फ के,
साए थे गिरते आँख पर,
सिर के उस हिस्से में हाय !
बरबादियों का दौर है

देख सफेदी कनपटी की,
समझाया फिर ख़ुद को यही,
अंगूर रहने में रखा क्या,
किशमिश के जलवे और हैं  |  


- योगेश शर्मा

2 टिप्‍पणियां:

  1. gazab likha hai ...bade bhaai .....bahut hi sundar ....saty ke karib se guzarate hue .....taarif karna mushkil hai .....bas apne shabdo me yahi kahonnga ,,,,ki " bole to ekdam raapchik maal hai ye rachna "

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