14 मई 2010

"आधे चाँद की कसम"




आधे चाँद की खाऊँ कसम मैं,
और आधे की खाओ तुम,
मैं हमराही रहूँ तुम्हारा ,
मेरी मंजिल बन जाओ तुम,


उम्र का ही हिस्सा हो कर  ,
हर पल मेरे साथ रहो,
हर सांस तुम्हारी मेरी है
यह बात हमेशा कहती  रहो,
रूह मेरी बन कर के ही,
मुझमें ग़ुम हो जाओ तुम,

आधे चाँद की खाऊँ कसम मैं,
और आधे की खाओ तुम,


तुम से ही बातें करते हुए
अपनी शामें गुलज़ार करूं,
कोई और न याद रहे मुझको,
बस तुमसे ही प्यार करूं,
आये नींद तो संग तुम हो
और ख्वाबों में भी आओ  तुम,

आधे चाँद की खाऊँ कसम मैं,
और आधे की खाओ तुम,


इक छोटी ज़मीं, छोटा अम्बर,
छोटी सी हो अपनी दुनिया,
छोटी उम्मीदें,  गम छोटे ,
छोटी छोटी ढेरों खुशियाँ,
हर जन्म में मेरी होके रहो
हर जन्म मुझे ही पाओ तुम,

आधे चाँद की खाऊँ कसम मैं,
और आधे की खाओ तुम |


- योगेश  शर्मा  

5 टिप्‍पणियां:

  1. आधे चाँद की खाऊँ कसम मैं,
    और आधे की खाओ तुम,
    आधे आप खा लें आधे आपकी तुम. बाकी जो बचेगा उसको हम खा लेंगे.
    बहुत सुन्दर रचना है
    कुछ-कुछ अलग सा

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  2. बहुत खूबसूरत और कोमल सी रचना....सुन्दर भाव...

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  3. sahi hai...maze kijiye sirji...rachna har baar ki tarah madhur...

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  4. खा ली कसम...बढ़िया रही!! :)

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  5. sunadar rachna hai yogesh jee...

    subhanallahhhhhhhh............

    subhkaamnayen....

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