01 अक्तूबर 2010

'दोस्ती ख़ुद से'












हुई क्या

दोस्ती ख़ुद से,

मैं

दुश्मन बन गया

अपना,



उम्मीदें जो थीं

कल तलक

दोस्तों से,

अब अपने आप से

हो गयीं ..............




- योगेश शर्मा

7 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी दोस्ती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    बदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका, मनोज कुमार,की प्रस्तुति राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

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  2. .

    Hey Relax !...Just give time to yourself.

    It's better to expect from ourselves, than from others.

    You know what ?...I also love myself !

    .

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  3. बहुत ही सुन्‍दर खुद की दोस्‍ती पर कहा आपने ।

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  4. बेनामी1/10/10 11:41 am

    achhi rachna khud ko khud se jodti huyi...aise kathin samay mein khud se baat karna jaroori....

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  5. ग़ालिब को थी उनसे वफ़ा की उम्मीद,
    जो जानते नहीं थे की वफ़ा क्या है,
    पर मियां ग़ालिब, गर उम्मीद न हो तो,
    फिर इस जिंदगी में और रखा क्या है ?

    लिखते रहिये ...

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  6. आदरणीय योगेश शर्मा जी
    नमस्कार !
    बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  7. खुद पर हौसला हो तो इंसान जग जीत सकता है ..

    अच्छी प्रस्तुति

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