10 नवंबर 2010

'खाली झोली ,सूनी दिवाली '



स्वप्न आँखों में बसाए
इस बरस भी
दीप आलों से गिराए
इस बरस भी

थी, आंसुओं से भीगी बाती
जल भला कैसे वो पाती
 सुलग कर, दम घोंटता सा    
बस, धुंआ ही छोड़ जाती
हो न पाया फिर उजाला
इस बरस भी

चौखट पे घर की बैठे बैठे
अंधेरों से अपने जूझते
दिख गये कुछ नन्हे चेहरे
झड़ियां हंसी की बिखेरते
साथ उनके मुस्कुराए
इस बरस भी
रौशनी उधार लाये
इस बरस भी

इस बरस भी
        इस बरस भी.......



- योगेश शर्मा

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