18 नवंबर 2010

'घर से जब निकले'



घर से  निकले तो नहीं सोचा था किधर जायेंगे
आशियाने ख़ुद बना लेंगे अब जिधर जायेंगे

घाट के पत्थर बनेंगे ग़र किनारों पर रहे
पुल बने तो जाने कितने पार उतर जायेंगे

जिंदगानी के भंवर से मोती निकलते हैं बहुत  
सुनते हैं इसमें अगर डूबेंगे तो तर जायेंगे

ख़ार सेहरा में फलेंगे, धूप से लड़ते हुए
पेड़ दरिया के किनारे प्यास से मर जायेंगे 

कट गयी है उम्र सराबों के पीछे भागते
थक गए जब पैर तो कहते हैं अब घर जायेंगे |


- योगेश शर्मा

3 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत कविता..
    बहुत अच्छा लगा...

    आभार

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  2. घाट के पत्थर बनेंगे ग़र किनारों पर रहे
    पुल बने, तो जाने कितने पार उतर जायेंगे

    वाह...बहुत प्रशंशनीय सोच...आपको सलाम
    नीरज

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