27 फ़रवरी 2011

'यहाँ कोई नहीं रहता'



सितारों की चमक धुंधली 
चरागों की तपिश कम कम
ये साँसे हांफती सी  हैं
मगर दिल की सदा  मद्धम
बस इक धड़कन सी कहती है  
यहाँ कोई नहीं रहता

महलों में हैं सन्नाटे 
सभी दरबार हैं खाली
पड़े हैं रास्ते वीरां 
सब बाज़ार हैं खाली
कहीं कुछ घर से ढाँचे हैं
जहां कोई नहीं रहता

तूफां  सीने का, अपने  
किनारे तोड़ बैठा है
आँखों का  समंदर भी
नमक सब छोड़ बैठा है
वफायें क्यों वहाँ ठहरें 
जहां कोई नहीं रहता  

जो चाहा क़त्ल अब करना
तो बाहों में समेटा है
फिर दस्त ए खंजर को
अश्कों में लपेटा है  
पानी पर तो हाथों का 
निशां कोई नहीं रहता

ज़हरीली दुआओं ने
हवा को गर्क कर डाला
उगाकर आसमान इसमें
ज़मीं को नर्क कर डाला
है अब सूरज को हथियाना
वहाँ कोई नहीं रहता

बस इक धड़कन सी कहती है
यहाँ कोई नहीं रहता


- योगेश शर्मा







8 टिप्‍पणियां:

  1. कहीं कुछ घर से ढाँचे हैं
    जहां कोई नहीं रहता
    कई अर्थों को समेटे हुए अच्छी लगी , बधाई

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  2. बस एक धड़कन सी कहती है
    यहाँ कोई नहीं रहता.

    बेहतरीन भावों को समेटे सुंदर रचना. बधाई.

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  3. "ज़हरीली दुआओं ने

    हवा को गर्क कर डाला

    उगाकर आसमान इसमें

    ज़मीं को नर्क कर डाला

    है अब सूरज को हथियाना

    वहाँ कोई नहीं रहता"



    कुछ सन्देश देती है हर पंक्ति,

    पूरी की पूरी नज़्म ही लाजवाब है....!!

    कई रचनाएँ पढ़ीं,

    सब की सब एक से एक हैं !

    किसकी तारीफ करूं और किसको छोडूं...!!

    खूब....बहुत खूब.....!!

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  4. बस एक धड़कन कहती है यहाँ कोई नहीं रहता ..
    बेहतरीन !

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  5. आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा .... आपका अभिनन्दन है ..

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  6. वफायें क्यों वहाँ ठहरें
    जहां कोई नहीं रहता
    bahut achchi lagi.

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  7. प्रशंसनीय.........लेखन के लिए बधाई।
    ==========================
    क्या फागुन की फगुनाई है।
    डाली - डाली बौराई है॥
    हर ओर सृष्टि मादकता की-
    कर रही मुफ़्त सप्लाई है॥
    =============================
    होली के अवसर पर हार्दिक मंगलकामनाएं।
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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