10 अक्तूबर 2011

'जब तक जियें'



खौफ़ में मरने के
लाखों मौत क्यों मरते रहें
कोशिशें इतनी करें 
जब तक जियें ज़िंदा  रहें

रोक के रखना है क्यों 
खिंचती हुयी मुस्कान को
बाहों में क्यों न भर लें हर
उठते हुए अरमान को 
झाँक कर माज़ी में फिर 
कहीं आह न भरते रहें

खौफ़ में मरने के
लाखों मौत क्यों मरते रहें

जो हुआ वो हो चुका
इस आज की ना कुछ ख़ता
ये बुलबुला भी कल तलक़
पहुंचेगा क्या कुछ न पता
फूट जाएगा छुए बिन
इतना जो डरते रहे


खौफ़ में मरने के
लाखों मौत क्यों मरते रहें 


प्यार ऐसी शै नहीं
खर्चें तो कम पड़ जाएगा
बाँट लें जितना भी हम
और ज्यादा आयेगा
क्यों नफ़े नुक्सान की
फ़िक्र फ़िर करते रहें


खौफ़ में मरने के
लाखों मौत क्यों मरते रहें
कोशिशें इतनी करें 
जब तक जियें ज़िंदा रहें |


   
- योगेश शर्मा

2 टिप्‍पणियां:

  1. खौफ़ में मरने के
    लाखों मौत क्यों मरते रहें
    इतनी कोशिश कर लें हम
    जब तक जियें ज़िंदा रहें |

    सच कहा योगेश जी, बहुत सुंदर भावों को समेत है आपने अपनी खूबसूरत कविता में.

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  2. "होना था जो वो हो चुका
    इस आज की ना कुछ ख़ता
    ये बुलबुला कल तक पहुँच पायेगा
    ये भी क्या पता
    फूट जाएगा छुए बिन
    इतना जो डरते रहे "

    "डर किसे तूफ़ान का जब देने वाला साथ हो
    बिन डरे तू आज जी ले आंधियां चलती रहें..!!"
    khoosoorat andaaz..

    जवाब देंहटाएं

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