17 अक्तूबर 2011

'तक़दीर का बादल'



ये जो
तक़दीर का बादल है 
मनमौजी है,
कभी उड़ जाए
कभी ख़ुल के
बरस जाता है

यूं तो शादाब
कई गुंचे हुए हैं
दिल के,
सूखे पत्तों पर
जाने क्यों
तरस आता है





-योगेश शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. aapki is kavita par wah-waahi barbas baras jata hai....bahut sundar panktiya

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  3. बहुत खूब लिखा है योगेश जी ! कुछ दिन पहले मेरी एक कोशिश थी हिंदी में लिखने की , कृपया जरूर पढ़े आपके खाली समय में ...

    http://bdhyani.blogspot.com/2011/09/blog-post.html

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  4. अच्छी लगी यह रचना ..तकदीर के बादल अच्छा बिम्ब

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