03 फ़रवरी 2012

"बूँद ओस की "





सूरज की आहट पे जाग के मदहोशी से,
अलसाती ओस कहे फूल को सरगोशी से,
 " दोस्त विदाई दो, अब मुझको जाना है,
मेरी इस काया को भाप बन उड़ना है,


फिर इन हवाओं के पंखों पे झूलूँगी
लिपटे लिपटे इनसे नभ शिखरों को छू लूंगी
छोटा सा कण बन किसी बादल से जुड़ना है 
पवन पवन देश देश, मुझको तो फिरना है,


जाती हूँ, पर इक दिन फिर वापस आऊंगी
धरती के गालों पे झूम के झर जाऊंगी
 सतत क्रम यूं ही तो सदियों से चलता है
बीज पेड़ हो कर फिर बीज बनके उगता है


वैसे ही नया रूप लिए धरती पर छाना है 
  किसी और प्यासे की प्यास को बुझाना है  
काम कितने करने हैं, काम कितने आना है
करदो तुम दोस्त विदा, अब मुझको जाना है" |

 


- योगेश शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर...
    ओस का कहा..भला लगा...

    शुभकामनाएँ.

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  2. काम कितने करने हैं, काम कितने आना है
    करदो तुम दोस्त विदा, अब मुझको जाना है" |
    अनुपम भाव संयोजन ।

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  3. बहुत ही भावनात्मक प्रस्तुति.

    बधाई.

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