10 फ़रवरी 2012

'किसी काँधे पे सर रखूँ'



किसी काँधे पे सर रखूँ कि दिल की बात है बाकी, 
मगर अब न कोई अपना, न कोई साथ है बाकी


ज़माना और था, मदमस्त होकर भीगते थे हम,
न वो सावन, न वो झूले, न वो बरसात है बाकी


मनाना चाहूँ पर रूठे हुए साथी नहीं मिलते,
ये कोशिश क्यों न पहले की,ये अहसासात हैं बाकी


सफ़र लम्बा बहुत है और बड़ी शिद्दत की गर्मी है,
किसी आँचल के साए की बची बस बात है बाकी


लहू ये मेरे ज़ख्मों से ज़रा कुछ और बहने दो,
अभी तो सहना सीखा है, बहुत से घात हैं बाकी 


किसी काँधे पे सर रखूँ कि दिल की बात है बाकी




- योगेश शर्मा

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव...
    सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  2. अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. बहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.

    meri kavitayen ब्लॉग की मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें.

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  4. हम जानते हैं दिल उडेल दिया तुमने हमदम ,
    मगर पता ये भी है कि , अभी कई जज़बात बांकी है

    बहुत ही कमाल , बहुत ही सुंदर , इतनी कि मैं भी पंक्तियां जोड गया

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  5. सफ़र लम्बा बहुत है और बड़ी शिद्दत की गर्मी है,
    किसी आँचल के साए की बची बस बात है बाकी
    बहुत ही सुंदर .........

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  6. दिल की बातें कहाँ खत्म होती हैं...

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