14 फ़रवरी 2012

'सपने ही पाते हैं मंजिल'




सपने ही पाते हैं मंजिल
कदम तो चलते रहते हैं
सूरज तो चमके है हर पल   
दिन उगते ढलते रहते हैं


जीवन सूना दर्पण होता  
जो न होते स्वपन ये सारे
मन की कश्ती फिर भर जाए 
जाने कितने पार उतारे


कब ढलते हैं स्वप्न भला ये  
ढलते हैं बस  रात के साए 
जाता अंधियारा मुट्ठी में 
नन्हा उजियारा दे जाए


आशाओं की जगमग माला में  
रात तो एक  कड़ी है
गिरे अगर तो उठ सकते हो
ये समझाने ही जुड़ी है


पलकों के आले में ये 
अविरल जलते रहते हैं
सपने ही पाते हैं मंजिल
कदम तो चलते रहते हैं |





- योगेश शर्मा 

14 टिप्‍पणियां:

  1. आशा की जोत जगाती ..
    सार्थक रचना..
    बधाई.

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  2. बहुत खूबसूरत और सकारात्मक सोच लिए हुये ... अच्छी प्रस्तुति

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  3. सच ही तो है ज़िंदगी में यदि सपने न हो तो कुछ है ही नहीं जीने के लिए जैसा की आपने खुद ही कहा है "सपने ही पाते हैं मंज़िल कदम तो चलते रहते है" बहुत ही सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति

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  4. सपने ही पाते हैं मंजिल...बहुत खूब...

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  5. कभी कभी अंधेरा भी जरूरी होता है..नए सृजन में अंधेरे की बड़ी भूमिका है...

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  6. बहुत उम्दा लिखा है आप ने

    आप को होली की खूब सारी शुभकामनाएं

    नए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है

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    स्वास्थ्य के राज़ रसोई में: आंवले की चटनी

    razrsoi.blogspot.com

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  7. सुन्दर रचना....
    आशाओं के दीप जलाती...

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  8. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...

    नीरज

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  9. आशाओं की जगमग माला में
    रात तो एक कड़ी है
    अगर गिरे तो उठ सकते हो
    ये समझाने ही जुड़ी है
    sahi kaha aapne
    rachana

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  10. बेनामी2/4/12 7:30 pm

    waah! bahut umda....

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  11. बहुत समर्थ सृजन, बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें.

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