tag:blogger.com,1999:blog-1639910315310077662.post1040335308263843373..comments2023-10-31T15:21:04.255+05:30Comments on "बे - तकल्लुफ़": "कशमकश"Yogesh Sharmahttp://www.blogger.com/profile/13296401748828517861noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1639910315310077662.post-86176834893636825452010-04-25T12:06:55.663+05:302010-04-25T12:06:55.663+05:30पद्म सिंह जी और दिलीप भाई आप दोनों का बहुत धन्यवाद...पद्म सिंह जी और दिलीप भाई आप दोनों का बहुत धन्यवाद सलाह देने का | बहुत ही सकारात्मक , उचित और मेरे हित की बातें हैं | विडंबना यही है कि लखनऊ का होते हुए भी मेरा हाथ इन सब में बहुत तंग है | कई बार याद भी किया मगर रिटेन नहीं रह पाता और सोच का फ्लो मर जाता है || फिर सोचता हूँ कि अगर गुलज़ार साहब को जब कोई लय बद्द कर सकता है तो मुझे भी कोई मिल ही जाएगा | मगर जोक्स अपार्ट ...अब डंडा पड़ा है तो हिंदी युग्म पर ज़रूर जाऊंगा क्योंकी मैं ख़ुद अपनी कवितायें गा नहीं पाता| और कमियाँ जितनी दूर हो सके उतना ही अच्छा है | आप दोनों का बहुत बहुत आभार | इन कमियों के बावजूद मुझे पढ़ना मत छोड़ियेगा |Yogesh Sharmahttps://www.blogger.com/profile/13296401748828517861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1639910315310077662.post-87235853461217390442010-04-25T11:12:26.627+05:302010-04-25T11:12:26.627+05:30pehle hi sher ne dil jeeta thodi lay ki dikkat aat...pehle hi sher ne dil jeeta thodi lay ki dikkat aati hai....us par thoda sa dhyan de....दिलीपhttps://www.blogger.com/profile/15304203780968402944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1639910315310077662.post-87589746157403374952010-04-25T11:07:54.626+05:302010-04-25T11:07:54.626+05:30बड़ी ही सोच में था मैं, बची जब आख़री साँसे,
मरते म...बड़ी ही सोच में था मैं, बची जब आख़री साँसे, <br />मरते मरते जीने पे, ये दिल क्यों हार आया था<br />बहुत बढ़िया रचना ...समयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.com