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15 मई 2014

' हुक्मराँ '


हैं हमसफ़र कहाँ हम बस रास्ते दिखाएं
फितरत नहीं हैं उनकी चिराग़ों से दिल लगाएं

महफूज़ यूँ बहुत हैं तेरा सर पे हाथ पाकर
तेरी आस्तीं के हमको कहीं सांप डस न जाएँ

ज़्यादा ग़िला नहीं है हमें उनकी रहबरी से 
कोशिश मगर रहेगी कि वो भी लुट के जाएँ

हमने खिज़ा के दम पर गुलशन सजा लिया है
बहारों से जा के कह दो कहीं और आयें जाएँ

मज़लूम बाज़ुओं ने उठा लिए हैं पत्थर 
है हाकिमों में दम तो शीशे के घर बनाएं

दोस्ती बहुत की, अरमान अब यही  है
दुश्मनी में हमको कहीं आप कम न पाएं

हैं हमसफ़र कहाँ हम बस रास्ते दिखाएं।



- योगेश शर्मा

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