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06 फ़रवरी 2016

'आवारा हवाएं'



पते बस मज़ारों के पुराने नहीं होते
आवारा हवाओं के ठिकाने नहीं होते

थम जायेगी जब थक के तो अपना बयाँ देगी
चलती हुयी धड़कन के फ़साने नहीं होते

उसके मशवरे पर जो ख़ार उगा लेता
बाग़ों में मेरे तब ये वीराने नहीं होते

अपनी ज़मीं से थोड़ा हम और जुड़े होते
रिश्ते जो आसमां से निभाने नहीं होते

खुशियाँ,नसीब, रिश्ते तो कब के हो गए गुम  
ये दर्द ही कम्बख़्त बेगाने नहीं होते

वो आज भी लोगों से गले लग के मिलता है
कुछ लोग उम्र भर तक सयाने नहीं होते

आवारा हवाओं के ठिकाने नहीं होते...



- योगेश शर्मा

1 टिप्पणी:

  1. बेनामी6/11/22 2:35 pm

    वाह जनाब। क्या मुकद्दस अल्फाज हैं,आपके। बहुत खूब , जियो प्यारे।

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