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05 जून 2012

'बहुत दिनों से लब नहीं खोले'



बहुत दिनों से लब नहीं खोले  
नज़र  में सब पयाम रखता हूँ 
भूल बैठा हूँ सारी परवाज़ें  
खूद को मुटठी में थाम रखता हूँ 

न कोई शौक न कोई चाहत 
रहे  न सपने, है यही राहत  
हसरतें सब नाक़ाम रखता हूँ 

ख़ुद से शिक्वे, कई गुज़री यादें 
रूठे रिश्ते , थोड़े टूटे वादे 
बोझ दिल पे तमाम रखता हूँ 

ख्वाब सा है किसी का घर आना 
ऐसे सीखा है दिल को बहलाना  
आहटों के ही नाम रखता हूँ 

खेलता हूँ ये मौत से, या फिर
कहीं जीने से लग रहा है डर
अपने सर पर इनाम रखता हूँ 

बहुत दिनों से लब नहीं खोले  
नज़र  में सब पयाम रखता हूँ 



- योगेश शर्मा



4 टिप्‍पणियां:

  1. खेलता हूँ ये मौत से, या फिर
    कहीं जीने से लग रहा है डर
    अपने सर पर इनाम रखने लगा
    बहुत खूब।

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  2. "'बहुत दिनों से लब नहीं खोले'"

    अब लब खोल भी दें.....
    कुछ सुने.....
    कुछ बोल भी दें...!!

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  3. ख्वाब सा है किसी का घर आना
    ऐसे सीखा है दिल को बहलाना
    आहटों के ही नाम रखने लगा ...बहुत बढ़िया भाव संयोजन समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

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