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27 अगस्त 2012

'मेरे सफ़र में इक साया





मेरे सफ़र में इक साया  
हमेशा साथ चलता है
ख़ुशी में कहकहे देता 
ग़मों में गुनगुनाता है 

संग में ठोकरें खाए 
गिरता है संभलता है
तपिश जितनी हो सूरज की
ये मेरे साथ जलता है
कभी फिसला ये मेरे साथ  
मैं इसके संग कभी संभला
मेरे कंधे पे रखे हाथ  
आगे बढ़ता रहता है 

मेरे सफ़र में इक साया  
हमेशा साथ चलता है

जुड़ा हूँ किस कदर उससे
यह सिर्फ जानता हूँ मैं
वजह तो अपने चलने की
उसी को मानता हूँ मैं
मेरे रुकने पे थम जाए
मेरे चलने पे चलता है
मुझे रख कर उजाले में 
अँधेरे सारे लेता है

मेरे सफ़र में इक साया  
हमेशा साथ चलता है

कभी यूं भी लगा मुझको   
कि मैं ही इसका साया हूँ 
हुए बिन हमक़दम उसके  
कहाँ मैं चल भी पाया हूँ
किसी शमा की मानिंद
रौशनी आबाद रखता है 
लेकर रंग सब अपने  
मेरे चेहरे में भरता है 

मेरे सफ़र में इक साया  
हमेशा साथ चलता है
ख़ुशी में कहकहे देता 
ग़मों में गुनगुनाता है 



- योगेश शर्मा 

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