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06 सितंबर 2012

'सोया नहीं हूँ'




ये जिस्म मेरा आखिर 
क्यों सामने पड़ा है
सिरहाने जल रहा 
दिया एक बड़ा है
 नाम लेके मेरा 
क्यों सबको रुलाते
मुझे क्यों न आवाज़
देकर बुलाते
भीड़ में ही खड़ा हूँ 
खोया नहीं हूँ
उठाओ मुझे कोई,
सोया नहीं हूँ


कहीं चाहतों के
हैं कुछ जाम बाकी
अभी तो बचे हैं
कई काम बाकी
इस जिस्म में 
आ जाऊंगा फिर से
घड़ी भर लगा लो
इसे बस गले से
यूं भी ज़माने से
रोया नहीं हूँ
उठाओ मुझे कोई,
सोया नहीं हूँ


अभी और रुकने की
हसरत है मेरी
ज़रा कह दे कोई
ज़रुरत है मेरी
आ जाऊंगा ग़र
जो दरकार है
पुकारे कोई
यही इंतज़ार है
यूं ही खेलता हूँ
कि गोया नहीं हूँ
उठाओ मुझे कोई,
सोया नहीं हूँ


भीड़ में कुछ नए
कुछ हैं चेहरे पुराने
थोड़े अपने भी थे
रह गए कहाँ जाने
है दौड़ धूप सबकी
मसले हैं अपने अपने
करने पूरे हैं सबको
अपने हिस्से के सपने
मिलें जब तो कहना ये
मैं खोया नहीं हूँ
 नया ये सफ़र है,
        सोया नहीं हूँ .......


- योगेश शर्मा 

4 टिप्‍पणियां:

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