लम्हें बेरंग थे अब थोड़ा रंग आया है
ये लहू बह रहा है बहने दो
बनके रह जाएगा चिड़ियों का बसेरा कल से
इस नए बुत को आज ख़ुदा रहने दो
ऊंची आवाज़ को हक़ीक़त मानने वालों
चीख़ के मुझको एक झूठ ज़रा कहने दो
बाद मुद्दत के एहसास कोई छलका है
अश्क की बूँद पलकों पे पड़ी रहने दो
फिर न आने का उसको यकीं गहरा है
लौट आएगा कभी मेरा भरम रहने दो
अभी ये वक़्त बदलने में वक़्त बाकी है
वक़्त की मार कुछ और वक़्त सहने दो
अनगिनत लम्हों की धड़कन इनमें ज़िंदा है
सूखे फूलों को किताबों में पड़ा रहने दो
दर्द- ए- दिल में कमी न रहने दो
दिल में नश्तर गड़ा ही रहने दो.....
- योगेश शर्मा
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