20 मार्च 2011

'उजाले की नींव'




दिखें मंजिलें नहीं, स्याह रास्ते हैं बस
खेत आहों के हैं, फसलें ग़म की हैं बस
 
इमारतें हर तरफ, घुप  अँधेरे  की हैं
 रोशनी को तलाश, इक सवेरे की है
 
उसके इंतज़ार में, कितना  बैठेंगे अब
ओढ़ी बेहोशी से, थक के जागेंगे कब
 
यूं  ही पलकों को मींचे, जो कुछ और बैठे
  देख पाएं जो उजाले,  वो नज़रें न खो दें
 
  रूह तो फुंक रही, ज़रा राख ही संभालें
चिंगारी सी बची है, शोला उसे बना लें
 
अपनी ही रौशनी को, अब दबाना नहीं है
अपने इन्सां को खुद से, छुपाना नहीं है

हों परेशान क्यों, ग़र जहां सो रहा है
अपने मन को जगा लें, जो आसमां सो रहा है

जिस तरह एक जागा, वैसे जागेंगे सब 
 नींव रखें अपने हाथों, एक उजाले की अब 

नींव रखें अपने हाथों, एक उजाले की अब | 

 - योगेश शर्मा 

9 टिप्‍पणियां:

  1. khudi ko kar buland itna...ujale ki kiran gupp andheron se nikalti hai...

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  2. इमारतें हर तरफ
    घुप अँधेरे की हैं
    रोशनी को तलाश
    इक सवेरे की है
    सन्देश देती हुई रचना यह हमारे आधुनिक होने का खामियाजा है
    बहुत सुन्दर बधाई

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  3. सकारात्मक सोच के साथ सुन्दर रचना ...

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  4. रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
    कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  5. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  6. "यूं ही पलकों को मींचे
    जो कुछ और बैठे
    जो उजाले देख पाए
    वो नज़रें न खो दें

    अपनी ही रौशनी को
    अब दबाना नहीं है
    अपने इन्सां को खुद से
    अब छुपाना नहीं है


    नींव रखें अपने हाथों
    उस उजाले की अब |"

    बहुत सुन्दर ज़ज्बात.....
    कुछ अलग सा सन्देश देती रचना...!!

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  7. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://vangaydinesh.blogspot.com/
    http://dineshsgccpl.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

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