दिल में ख़लिश छुपाए
चेहरे में थोड़े ग़म
एक बिस्तर पे लेटे
पर अजनबी से हम
तक़रार में हुए हैं
जज़्बात बयां जबसे
माथे पे सिलवटें हैं
खामोश जुबां तबसे
हैं होंठ खुश्क थोड़े
आंखें हैं थोड़ी नम
एक बिस्तर पे लेटे
पर अजनबी से हम
अपनी अना* से जबसे
नाता सा जोड़ बैठे
इक दूसरे से तबसे
रिश्ता ही तोड़ बैठे
अब एक सिरे पे वो है
दूजे सिरे पे हम
एक बिस्तर पे लेटे
पर अजनबी से हम
खामोशियों के नश्तर
रुक रुक के गड़ रहे हैं
जिस्मों के फ़ासले भी
कुछ ऐसे बढ़ रहे हैं
जैसे चले नहीं हों
कभी साथ दो कदम
एक बिस्तर पे लेटे
पर अजनबी से हम
साँसों की उसकी हलकी
आवाज़ लगे ऐसे
कहती हो बढ़ के आगे
थामो पहले जैसे
कतराते यूं रहे जो
कुछ और थोड़ा हमदम
बन जाए न कहीं फिर
पूरे अजनबी हम
दिल में ख़लिश छुपाए
चेहरे में थोड़े ग़म
एक बिस्तर पे लेटे
पर अजनबी से हम
अना - अहम् ,ईगो
- योगेश शर्मा