06 अप्रैल 2010

"ख़त तुम्हारा"





ख़त मिला तुम्हारा
बगैर पते पहुँचा मुझ तक
हवाएं जानती हैं खूब
तुम्हारे ख़त लाना मुझ तक

चलीं दिल से तुम्हारे
वो मेरे घर के रास्ते,
उन्हें पता है, ख़त तुम्हारे
होते बस मेरे वास्ते

नाम न लिखा अपना
फिर भी मैं जान गया,
तुम्हारे प्यार की खुशबू से
ये ख़त पहचान  गया,

कोई तहरीर नहीं
पर मैं सब जानता हूँ,
सूखे अश्कों की लिखावट
खूब पहचानता हूँ,

मुझे मालूम है न आयेंगे
कभी ख़त आज के बाद,
तुम्हें  मालूम है न लिखोगी
कोई ख़त आज के बाद,

तुम्हें पता है, मैं मजबूरियां
तुम्हारी जानता हूँ,
न होना परेशां कभी तुम
क्योंकि मैं मानता हूँ,

कि तुमको शिकवा नहीं मुझसे,
मैं तुमसे नाराज़ नहीं
हम वो एहसास हैं जो ,
ख़त के मोहताज नहीं

ख़त मिला तुम्हारा.....
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- योगेश शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह इतना खूबसूरत खत तो आज पहली बार ही पढा हमने । बहुत ही सुंदर जी बहुत ही सुंदर
    अजय कुमार झा

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  2. assa hi hota he oe asse hi khayal aate he jab pyar hota he






    shekhar kumawat


    http://kavyawani.blogspot.com/

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  3. बहुत सुंदर कविता।

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