माँ,
मैं ये जानता हूँ,
कहीं तुम भी ये मानती हो
कि मैं बड़ा हो गया हूँ
पुकारते तुझको,
जिन पर सरकता था
हर दो कदम पर,
लड़खड़ा के गिरता था,
उन पैरों पर खड़ा हो गया हूँ,
माँ, मैं बड़ा हो गया हूँ
माँ, मैं बड़ा हो गया हूँ
पर माँ.... मैं कहना चाहता हूँ,
कुछ देर को सोना चाहता हूँ,
तुम्हारी गोद में रख कर सिर,
सुनते सुनते कोई कहानी,
लोरिआं सुनते सुनते फिर,
बस तुम्हारी आवाज़ में,
नींद आने पे भी जो,
बहुत देर तक ,
गूंजती थी मेरे कान में,
माँ, मैं जगना चाहता हूँ,
तुम्हारे हाथों से,
जो फिरते थे मेरे बालों में,
मुझे जगाते हुए,
और हँसना चाहता हूँ,
उस गुदगुदी से,
जो तुम करतीं थी,
मुझे उठाते हुए,
ताकि तुम मुझे चुप कराओ,
पोंछो अपने आँचल से,
आंसू मेरे, और समझाओ,
कि सब ठीक हो जाएगा, फिर से,
और मैं खुश हो जाऊं, फिर से,
माँ, मैं इतना चाहता हूँ,
मैं फिर छोटा होना चाहता हूँ,
रख दूं चिंताएं एक तरफ,
अपने सारे दुःख भूल सकूं,
सिर्फ तेरा बेटा बनकर,
तेरे कन्धों पर झूल सकूं
समय को फेंकना चाहती थी,
मुझको जल्दी जल्दी से,
बड़ते देखना चाहती थीं,
मैं भी समय को ताकत से,
पीछे धकेलना चाहता हूँ,
अपने पहले दोस्त के संग,
फिर से खेलना चाहता हूँ,
माँ, मैं ये जानता हूँ ,
ये सब कुछ हो सकता नहीं,
मैं इस पेड़ को धरती में,
अब फिर से बो सकता नहीं,
चाहे कुछ भी कर लूं लेकिन
वापस छोटा हो सकता नहीं,
वापस छोटा हो सकता नहीं,
माँ, मैं ये करना चाहता हूँ ,
ये सब कहना चाहता हूँ ,
पर कहने में शर्माता हूँ ,
कहीं ख़ुद से ही घबराता हूँ ,
क्योंकि, अब मैं बड़ा हो गया हूँ ,
अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ ,
माँ, मैं बड़ा हो गया हूँ,
हाँ, में बड़ा हो गया हूँ......
- योगेश शर्मा
good
जवाब देंहटाएंbahut khub
achi kavita he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
vaah yogesh ji aankhein nam ho gayi...kash sab kuch fir pa sakte.....
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
अत्यंत सुन्दर. माँ के साथ हमारा एक अल ही रिश्ता होता है. पवित्र और ममता से भरा हुआ.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
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