25 जुलाई 2010

'इक और आस्मां हैं'


कितना उड़ोगे ऊपर, जाना तुम्हें कहाँ है,
हर आस्मां के ऊपर, इक और आस्मां हैं

ऊंचाई खूब है पर दिखावों पे नहीं जाना
अन्दर से बहुत लेकिन कमज़ोर आस्मां है

दिन में चहक परों की, छुपाती हर आवाज़
रातों को मगर करता इक शोर आस्मां है

ऊपर उठोगे ख़ुद से, ये जान जाओगे तब  
हर ओर रौशनी है, हर ओर आस्मां हैं

कितना उड़ोगे ऊपर, जाना तुम्हें कहाँ है,
हर आस्मां के ऊपर, इक और आस्मां हैं |




- योगेश शर्मा

5 टिप्‍पणियां:

  1. हर आस्मां के ऊपर इक और आस्मां हैं'

    और जो दिख रहा है शायद वह छलावा है
    बहुत सुन्दर रचना

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  2. ऊंचाई खूब है पर, दिखावों पे नहीं जाना सही बात
    अच्छी लगी

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  3. बहुत खूब...हर आस्मां के ऊपर इक और आस्मां हैं
    आस्मां को लेकर अनूठा, प्रेरक विचार है.

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  4. ऊंचाई खूब है पर, दिखावों पे नहीं जाना
    अन्दर से बहुत लेकिन कमज़ोर आस्मां है
    दिखने वाले और होने वाले दोनों आसमान अलग है ...सही चेता दिया है ...!

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