16 अगस्त 2010

'मुहाफ़िज़ मेरे'



तुझसे  नाराज़  नहीं  हूँ मैं,  मुहाफ़िज़  मेरे
मेरी  तकदीर  में  था,  हाथ  से  मरना  तेरे

मेरी  मासूमियत  का  अंजाम,  ये  होना  ही  था
मैं  थक  गया  था  हँसते,  मुझे  रोना  ही  था
है  शुक्र  दर्द  मिला  मुझको,  मोहसिन  से  मेरे
मेरी तकदीर में था हाथ से मरना तेरे

 ये भी हो सकता है तेरी, कोई मजबूरी  होगी
या  रही  अपने  दिलों  में,  कहीं  दूरी  होगी
वरना  हो  जाता  इल्म,  कुछ  तो  इरादे  का  तेरे 
मेरी तकदीर में था, हाथ से मरना तेरे

तेरी  मेहरबानी  है,  मुझे तूने  तड़पने  न  दिया
काम मेरा तमाम एक  ही झटके में किया
हुआ अहसास न  मुझको, दम  निकलने का मेरे
मेरी तकदीर में था हाथ से मरना तेरे



इक  गुजारिश  है ज़रा सी, ओ हमदम मेरे 
जब भी जायेंगे गली मेरी ये कदम तेरे 
एक छिड़क देना नज़र हंस कर घर पर मेरे
मेरी तकदीर में था, हाथ से मरना तेरे

तुझसे नाराज़ नहीं हूँ मैं, मुहाफ़िज़ मेरे

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