03 अक्टूबर 2010

'अरमानों का दरख़्त'


मेरे दिल में अरमानों का
बहुत बड़ा सा इक दरख़्त है
उस पर ढेरों टंगे हैं सपने
जिन्हें पकने में अभी वक्त है

वो सपने जो मैंने देखे
वैसे जैसे सबने देखे
कभी सोते कभी जागते हुए
जाने कितने सपने देखे

कुछ मीठे, प्यारे से और कुछ
होश उड़ाते सपने देखे
रोज़ नये सपने भी बोये
और देखे सपने फिर देखे

कई सपने पूरे भी हो गये
और कबके यादों में खो गये
बाकी कुछ आँखों के रस्ते
यूं ही कभी छलक आते हैं
भीतर अब भी सांस ले रहे
मुझको ये बतला जाते हैं

पोंछ के मैं इनको यूं अपनी
आँखों मैं फिर भर लेता हूँ
इक रोज़ इन्हें कर लूँगा पूरा
वादा ख़ुद से कर लेता हूँ

मेरे दिल में अरमानों का
बहुत बड़ा सा इक दरख़्त है
उस पर ढेरों टंगे हैं सपने
जिन्हें पकने में अभी वक्त है।


- योगेश शर्मा

8 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी3/10/10 10:48 am

    मेरे दिल में अरमानों का
    एक बड़ा सा दरख़्त है
    उस पर ढेरों टंगे हैं सपने
    जिनके पकने में वक्त है
    waah bahut khub...
    yogesh bhai kya likhte hain aap..maza aa gaya...

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  2. बहुत खूबसूरत रचना ...अरमानों का दरख्त ...मेरे मनमाफिक बात कही है ..

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  3. रोज़ नये सपने कुछ बोये
    देखे सपने फिर फिर देखे
    सपने तो जिन्दगी का हिस्सा हैं.
    बहुत सुन्दर लिखा है

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  4. बुनते रहिये सपने और ख़्वाबों को गुनगुनाते रहिये,
    लम्बा है सफ़र जिंदगी का, कुछ न कुछ आजमाते रहिये ...

    लिखते रहिये ...

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  6. बहुत अच्छा लिखा है |बधाई
    आशा

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  7. मेरे दिल में अरमानों का
    बहुत बड़ा सा इक दरख़्त है
    उस पर ढेरों टंगे हैं सपने
    जिनके पकने में अभी वक्त है


    सच में वक्त है..

    खूबसूरत रचना.

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