मेरे सब्र पे सवाल करता है ये जहॉं
जिसको न दिखी अपने ज़ुल्मों की इन्तेहाँ
जिसको न दिखी अपने ज़ुल्मों की इन्तेहाँ
ज़ख्मों पे नमक डाला बन कर के चारागर
और हंस के पूछते हैं अब दर्द है कहाँ
बैठे हैं मेरे घर में हाथों में पकड़े सर को
तकलीफ़ उनको है क्यूं सब आसान है यहाँ
तकलीफ़ उनको है क्यूं सब आसान है यहाँ
गड्ढों में अपने सीने के भरते हैं ख़ाक मेरी
हसरत से कह रहे कि दिल उगायेंगे वहाँ
मेरे सब्र पे सवाल करता है ये जहॉं
जिसको न दिखी अपने ज़ुल्मों की इन्तेहाँ।
जिसको न दिखी अपने ज़ुल्मों की इन्तेहाँ।
- योगेश शर्मा
सीने के गड्ढों में अपने, ख़ाक मेरी भर रहे
जवाब देंहटाएंबड़ी हसरत से कहते हैं कि दिल उगायेंगे वहाँ
ओह ...क्या बात कही है ...
डरतें है, की मरके भी, जो न चैन मिला तो ?
जवाब देंहटाएंसुनते है हाल वहाँ के, जुदा नहीं यहाँ !
बहुत अच्छे , लिखते रहिये ....
सीने के गड्ढों में अपने, ख़ाक मेरी भर रहे
जवाब देंहटाएंबड़ी हसरत से कहते हैं कि दिल उगायेंगे वहाँ
वाह! क्या खूब कहा है……………बेहद उम्दा।
सुंदर भाव लिए पोस्ट |बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
wah. kitni sunderta se likhi hai.
जवाब देंहटाएंlast two lines are awesome :)
जवाब देंहटाएंसीने के अपने गड्ढों में , ख़ाक मेरी भर रहे
जवाब देंहटाएंबड़ी हसरत से कहते हैं कि दिल उगायेंगे वहाँ
हर दर्द देने वाला अपने लिए प्यार कि ही चाह रखता है.....