किन इशारों पे नाचते हो, दिन रात,
गीत नफरत के गाये जाते हो,
गीत नफरत के गाये जाते हो,
न पता नाम, न पहचान शक्लों की,
फिर भी, दुश्मनी निभाए जाते हो,
रौंद के बाग़, बसा दिए मरघट,
मेले, लाशों के लगाये जाते हो,
ये प्यास क्या, मांगे खून, हर पल,
ये कैसी भूख, कि इंसान खाए जाते हो,
मेले, लाशों के लगाये जाते हो,
ये प्यास क्या, मांगे खून, हर पल,
ये कैसी भूख, कि इंसान खाए जाते हो,
जानें लेकर जो और ज्यादा बढ़ती है,
इतनी नफरत किधर से लाते हो,
अपने बच्चों को, बजाये सपनों के,
सिर्फ बंदूके थमाए जाते हो
अपने बच्चों को, बजाये सपनों के,
सिर्फ बंदूके थमाए जाते हो
जो बस चाहें अनाथ शक्लें, भूखी नज़र
उजड़ी मांगें और बिखरे घर
पूछता हूँ ख़ुदा से, थक कर
उजड़ी मांगें और बिखरे घर
पूछता हूँ ख़ुदा से, थक कर
ऐसे कलेजे कहाँ बनाते हो
ऐसे कलेजे कहाँ बनाते हो |
- योगेश शर्मा
उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपाकिस्तान व चीन में बैठे भारत के सत्रुओं के इसारे व सेकुलर गद्दारों के सहारे नाच रहें ये राक्षस जनाब।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंbahut hi umdaah...
जवाब देंहटाएंyahan ke tathakathit wasoolon ke upar prashnchihn lagaya hai aapne......