न मैंने देखा दानव ,
ना देखा मैंने ईश्वर,
इक नाम भय जगाये,
इक नाम से झुके सर
नहीं पता ये मुझको
दिखने में कौन कैसा,
है स्पर्श शांति का इक
दूजा सिहरन के जैसा
हैं दोनों अपने भीतर
अपना ही रूप हैं ये
कहीं मेघ काले गहरे
कहीं उजली धूप हैं ये
पिघले कमल के जैसे,
एक भोर की है लाली,
हर आस लील ले जो
एक, रात ऐसी काली
एक सिर्फ करता कब्ज़ा
हर आस, सांस पर
दूजा वो शक्ति देता
जैसे हों लग गए पर
अब है हमारे ऊपर ,
चाहे जगा लें जिसको,
उस जैसे ही बनेंगे ,
अपना बना लें जिसको |
nice poem
जवाब देंहटाएंसुन्दर तुलना की है ,,,अच्छी रचना !!!...hamari ek rachna par vichar de
जवाब देंहटाएंsundar bahut khoob...
जवाब देंहटाएंये दोनों अपने भीतर ,
जवाब देंहटाएंअपना ही रूप हैं ये,
कहीं मेघ गहरे काले,
कहीं उजली धूप हैं ये
बहुत ही सही कहा आपने ,उम्दा प्रस्तुती ....
अब है हमारे ऊपर ,
जवाब देंहटाएंचाहे जगा लें जिसको,
उस जैसे ही बनेंगे ,
अपना बना लें जिसको |
बहुत ही गहन और उम्दा रचना!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंढेर सारी शुभकामनायें.