-
बहुत जिया, घुटनों पे अपने चल चल के
मरा हूँ रोज़, कतरा-कतरा तिल तिल के
नये सिरे से, आज खुद से जुड़ना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
आँखों को किये बंद, होंठों को सिये
कब से बैठा हूँ तूफ़ान इक सीने में लिये
तोड़ के सारी हदें, टूट कर के बहना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
हमेशा डर से हवाओं के, जलाया न दिया,
शमायें रख के सिरहाने पे, अंधेरों में जिया,
उठेंगे शोले, चिरागों को ऐसे जलना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
पुकारो जितना मुझे, लाख़ दे लो आवाजें,
किसी के रोके रुकेंगी, न अब ये परवाज़ें,
दिखी है राह नयी, पीछे नहीं मुड़ना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
मरा हूँ रोज़, कतरा-कतरा तिल तिल के
नये सिरे से, आज खुद से जुड़ना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
आँखों को किये बंद, होंठों को सिये
कब से बैठा हूँ तूफ़ान इक सीने में लिये
तोड़ के सारी हदें, टूट कर के बहना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
हमेशा डर से हवाओं के, जलाया न दिया,
शमायें रख के सिरहाने पे, अंधेरों में जिया,
उठेंगे शोले, चिरागों को ऐसे जलना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
पुकारो जितना मुझे, लाख़ दे लो आवाजें,
किसी के रोके रुकेंगी, न अब ये परवाज़ें,
दिखी है राह नयी, पीछे नहीं मुड़ना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
- योगेश शर्मा
bahut hi badhiya
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंये हौसला ये उत्साह यूँ ही कायम रहे ...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंमंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
अप्रतिम रचना...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज