सपने ही पाते हैं मंजिल
कदम तो चलते रहते हैं
सूरज तो चमके है हर पल
दिन उगते ढलते रहते हैं
जीवन सूना दर्पण होता
सूरज तो चमके है हर पल
दिन उगते ढलते रहते हैं
जीवन सूना दर्पण होता
जो न होते स्वपन ये सारे
मन की कश्ती फिर भर जाए
जाने कितने पार उतारे
कब ढलते हैं स्वप्न भला ये
ढलते हैं बस रात के साए
जाता अंधियारा मुट्ठी में
नन्हा उजियारा दे जाए
आशाओं की जगमग माला में
रात तो एक कड़ी है
गिरे अगर तो उठ सकते हो
ये समझाने ही जुड़ी है
पलकों के आले में ये
अविरल जलते रहते हैं
सपने ही पाते हैं मंजिल
कदम तो चलते रहते हैं |
कब ढलते हैं स्वप्न भला ये
ढलते हैं बस रात के साए
जाता अंधियारा मुट्ठी में
नन्हा उजियारा दे जाए
आशाओं की जगमग माला में
रात तो एक कड़ी है
गिरे अगर तो उठ सकते हो
ये समझाने ही जुड़ी है
पलकों के आले में ये
अविरल जलते रहते हैं
सपने ही पाते हैं मंजिल
कदम तो चलते रहते हैं |
- योगेश शर्मा
asha bahrti hui ...sabr sikhati hui ..sundar kavita ..
जवाब देंहटाएंआशा की जोत जगाती ..
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना..
बधाई.
बहुत खूबसूरत और सकारात्मक सोच लिए हुये ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसच ही तो है ज़िंदगी में यदि सपने न हो तो कुछ है ही नहीं जीने के लिए जैसा की आपने खुद ही कहा है "सपने ही पाते हैं मंज़िल कदम तो चलते रहते है" बहुत ही सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसपने ही पाते हैं मंजिल...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंbahut acchi ,,,,,,,prastuti , badhai
जवाब देंहटाएंकभी कभी अंधेरा भी जरूरी होता है..नए सृजन में अंधेरे की बड़ी भूमिका है...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिखा है आप ने
जवाब देंहटाएंआप को होली की खूब सारी शुभकामनाएं
नए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है
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bahot achcha likhe hain.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंआशाओं के दीप जलाती...
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
जवाब देंहटाएंइस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
नीरज
आशाओं की जगमग माला में
जवाब देंहटाएंरात तो एक कड़ी है
अगर गिरे तो उठ सकते हो
ये समझाने ही जुड़ी है
sahi kaha aapne
rachana
waah! bahut umda....
जवाब देंहटाएंबहुत समर्थ सृजन, बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें.