08 अक्टूबर 2017

'उठाओ पत्थर'




जो गुनाहगार हूँ तो चलो संगसार करो
उठाओ पत्थर और कस के मुझपे वार करो

तुमने कहा दलीलें हैं मेरी बेबुनियाद
मैं कर रहा हूँ कबसे तुम्हारा वक्त बर्बाद
इनकी बेबाकी से लेकिन डर चुके हो तुम
सुनाना बाकी है मग़र फैसला कर चुके हो तुम
बहाओ लहू ,चलो कपड़े तार तार करों
मेरे गुनाह के फ़ोड़ों को ज़ार ज़ार करो
उठाओ पत्थर और कस के मुझपे वार करो

में कभी तुमसे, तुम्हारे गुनाह ना पूछूंगा 
न मुफ़लिसी, न अपनों का वास्ता दूंगा
न कहूंगा तुम्हें मुंसिफ बनाया किसने है ?
मुझे उसी ने गढ़ा, तुमको  बनाया जिसने है
खैर छोड़ो, इन बातों को दरकिनार  करो
बड़े शौक़ से इन्साफ का क़ारोबार करो
उठाओ पत्थर और कस के मुझपे वार करो

मैं जानता हूँ, ख़ुदा का है ये दरबार नहीं
जो था गुनाह तो सज़ा मिलेगी दो बार नहीं
मिली यहां जो सज़ा तो ख़ुदा की रहमत होगी
वहाँ बेगुनाही का हासिल थोड़ी जन्नत होगी
तीर एहसान का मेरे दिल के आर पार करो
जिया बेज़ार सा पर मौत शानदार करो
उठाओ पत्थर और कस के मुझपे वार करो

जो गुनाहगार हूँ तो चलो संगसार करो
उठाओ पत्थर और कस के मुझपे वार करो।



- योगेश शर्मा


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