11 मई 2010

'शायरी का हुनर'




दर्द उसका ओढ़ा हुआ सा लगे
अपना ग़म एक समंदर सा लगे,

बाहर आयी हैं दिल की उलझने सारी
मेरा चेहरा किसी अखब़ार के पन्ने सा लगे,

गुजरते पल में रिश्तों के सही अक्स दिखें
हर बुरा वक़्तआइने सा लगे,

तराशा इसको तो एहसास चुभते हैं सभी,
ये शायरी का हुनर अब किसी घुटन सा लगे,

दर्द उसका ओढ़ा हुआ सा लगे
अपना ग़म किसी समंदर सा लगे,


- योगेश शर्मा

9 टिप्‍पणियां:

  1. गुजरते पल में, सही अक्स दिखें रिश्तों के,
    हर बुरा वक़्त, किसी आइने सा लगे,
    बहुत बढ़िया रचना ...धन्यवाद

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  2. तराशा इसको तो, एहेसास चुभते हैं सभी,
    ये शायरी का हुनर, अब किसी घुटन सा लगे,

    Bahut sundar Yogesh ji,
    सिर्फ कुछ टंकण त्रुटियों को नजरअंदाज न करे, जैसे अहसास

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  3. तराशा इसको तो, एहेसास चुभते हैं सभी,
    ये शायरी का हुनर, अब किसी घुटन सा लगे, waah ek aur naayab heera...

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  4. गुजरते पल में, सही अक्स दिखें रिश्तों के, हर बुरा वक़्त, किसी आइने सा लगे,



    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  5. लोग वाकिफ़ है, अंदर छुपी उलझनों से अब ,
    मेरा चेहरा किसी अखब़ार के पन्ने सा लगे....

    बहुत बढ़िया

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  6. तराशा इसको तो, एहसास चुभते हैं सभी,
    ये शायरी का हुनर, अब किसी घुटन सा लगे,

    -सही है!

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