15 जून 2010

'एक मसीहा आयेगा'




सुना है ग़म जब हद से गुज़र जायेगा
हर दर्द दूर करने एक मसीहा आयेगा

 उसके है इंतज़ार में कबसे ये क़ायनात
सदियाँ गुज़र गयी न हुयी कोई करामात

झूठी उम्मीद ये एक दिन टूट जाएगी
आसमां से हट कर ख़ुद पे नज़र जायेगी

जानेंगे हम पहल करनी ही होगी तन्हा
कोई नहीं ख़ुद हम हैं अपने ही मसीहा

आएंगे हाथ आगे फिर बांटने हर बोझ
उठेंगे हर तरफ नए मसीहा हर रोज़

मायूसियां मिटेंगी ख़त्म अंधेरा होगा
दौर आयेगा जब हर शख्स मसीहा होगा |



- योगेश शर्मा

9 टिप्‍पणियां:

  1. दूर होँगे मातम, ख़त्म हर अंधेरा होगा,
    वक्त आयेगा, जब हर शख्स मसीहा होगा

    आमीन !

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  2. योगेश साहेब आप का अंदाज़ इ बयान भी अच्छा है और पैग़ाम भी लेकिन बघिर मसीहा आये हर एक मसीहा हो जाए. एक ख्वाब सा लगता है. मसीहा तोह आएगा , इस दुनिया के लूग उनकी पीछे चलने के लावक तोह हो जाएं, वरना उसी मसीहे का क़त्ल कर देंगे.

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  3. मेरे ख्‍याल से आखि‍री लाइन के पहले "तुमने जि‍से सूली पे लटके हुए देखा होगा, वक्‍त आयेगा कि‍ वही शख्‍स मसीहा होगा" ये जगजीत सि‍ंह ने एक गजल में गाया हुआ है अदभुत संयोग है।

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  4. waah sirji bahut khoob...intzaar hai us din ka...

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  5. बेहतरीन पंक्तिया है, भाव भी बेहतरीन है!

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  6. आशावादी सोच ही अन्‍त तक कायम रहती है, अच्‍छी सोच बधाई।

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  7. सुन्दर भाव की रचना

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  8. आप हमेशा लाजवाब कर देते हैं....

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