जीवन लंबा, लम्बे रस्ते,
रस्तों की सारी धूप छांह,
अपने-अपने सपनों की राह,
अपनी मंजिल की लिए चाह,
जीने की आस में, काटें हम,
कितने ही पल मरते मरते,
जीवन लंबा ,लम्बे रस्ते.......
इसका हर घूँट, कभी अमृत सा,
कभी कड़वाहट, विष सी पायी है,
कभी एक सुरूर सा, छाया तो,
कभी उबकाई, भी आयी है,
जीवन को जिया, कभी घूँट घूँट ,
कभी इसको पिया है, बूँद बूँद डरते डरते,
जीवन लंबा ,लम्बे रस्ते........
कभी कांपीं टांगें, बिना चले ,
देख के अंगारों का सफ़र,
कभी फूल बिछे, उन राहों में ,
इक रोज़ जो थी, काँटों की डगर,
कभी बिना लड़े ही, मानी हार,
कभी जीत गए, हारी बाज़ी लड़ते लड़ते
जीवन लंबा ,लम्बे रस्ते.......
जब लगे, कि अब सब देख लिया,
कुदरत नया रंग दिखाती है,
जब लगे, है दुनिया काबू में,
नियति, तब धूल चटाती है,
चलता है, दौर ये जीवन का,
नित सबक नये , पढ़ते पढ़ते,
जीवन लंबा ,लम्बे रस्ते....
- योगेश शर्मा
इसका हर घूँट, कभी अमृत सा,
जवाब देंहटाएंकभी कड़वाहट, विष सी पायी है,
कभी एक सुरूर सा, छाया तो,
कभी उबकाई, भी आयी है,
जीवन को जिया, कभी घूँट घूँट ,
कभी इसको पिया है, बूँद बूँद डरते डरते,
जीवन लंबा ,लम्बे रस्ते........
Bahut khoob !
रचना भी बेहतरीन है..आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं(आईये एक आध्यात्मिक लेख पढें .... मैं कौन हूं।)
आपने लाजवाब कर दिया.....
जवाब देंहटाएंsahi kaha jeevan me kabhi bhi kuch bhi ho sakta hai...
जवाब देंहटाएंkya kahne, wah shandaar.
जवाब देंहटाएंhttp://udbhavna.blogspot.com/
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावाब्यक्ति|बधाई
जवाब देंहटाएंआशा