04 जुलाई 2010

'हैं चिराग़ अपनी मर्जी के'




हैं चिराग़ अपनी मर्ज़ी के
लाख़ आज़माअो हमको
आँधियों आगे बढ़ो
दम है तो बुझाओ हमको

ये डर जिंदा रहने का
है हर एक खौफ़ से बढ़कर
कभी ऐ मौत भूले से
तुम भी डराओ हमको

वो महफ़िल दोस्तों की थी
 जहां पे शाम गुज़री थी
है हाथों पे लहू कैसा
 कोई बताओ हमको


हुनर तुममें बहुत होगा
हमें ना याद करने का
मानेंगे जो यादों से
मिटा कर दिखाओ हमको |




- योगेश शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेह्तरीन प्रस्तुति---------कल के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।

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  2. खूबसूरत अभिव्यक्ति....जोश और हौसला दिखाती हुई

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  3. हैं चिराग अपनी मर्ज़ी के
    रहमतों के कायल नहीं ...

    आत्मविश्वास से भरपूर कविता ...आभार !

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  4. हुनर तुममें बहुत होगा,
    हमें ना याद करने का
    मान जायेंगे, इक बार
    भूल कर तो दिखाओ हमको
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं

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