यादों की डायरी के कुछ पन्ने | एक शख्स जिसको मैं बचपन में अक्सर देखता था, लगभग रोज़ | जिसको मैं नहीं जानता था, जिसे कोई नहीं जानता था या शायद जानना चाहता नहीं था | उस आदमी को मैं रोज़ ही नशे मैं धुत्त यहाँ से वहाँ भटकते देखता था और सोचता था कि वो ऐसा क्यों है| कभी वो मुझे देख कर मुस्कुरा देता पर मैं मारे डर के न मुस्कुरा पाता न उसके पास ही जा पाता | एक दिन वो नहीं दिखा, और फिर कभी नहीं दिखा | आज अचानक वो याद आ गया....क्यों??....बस यूंही.... और मैं अपने उन दिनों में चला गया , उन ख्यालों में, जो ,उसे देख कर मेरे दिल में उठते थे |
लड़खड़ाते घूमना चाहे,
बस खुमार में झूमना चाहे,
जाने किन यादों में भटके,
जाने क्या - क्या भूलना चाहे,
चौराहे पर, पेड़ के नीचे ,
गलियों में, कभी घर के पीछे
फटे हाल, बस आंखे मींचे,
घूम रहा बोतल को भींचे,
खो कर अपने आप को आखिर,
जाने क्या वो ढूँढना चाहे
कभी किसी से भागे डर के ,
कभी किसीको जाकर पकड़े ,
अजनबियों को गले लगाए,
अपनी परछाई से झगड़े,
जाने क्या कहना है उसको
जाने क्या क्या सुनना चाहे
खोकर होश भी होश में लगे
बस पीने के जोश में लगे
जाने किस किस से टकराता
कहाँ कहाँ जाकर गिर जाता
जीने से यूं ऊब गया कि
इस जहर में डूबना चाहे
कोई दोस्त नहीं कोई यार नहीं
लगता कोई घर बार नहीं
तोड़ लिया है सब से रिश्ता
या कोई रिश्तेदार नहीं
सज़ा दे रहा है क्या ख़ुद को
या अपनों को देना चाहे
लोग भी कब से उकताए हैं
कोई उसपर ध्यान न धरता
एक तमाशा भी न रह गया
अब कोई उस पर ना हंसता
एक पहेली बन के रह गया
जिसको कोई ना बूझना चाहे
लड़खड़ाते घूमना चाहे
बस खुमार में झूमना चाहे |
- योगेश शर्मा
सच नशे के इन प्रेमियों को देखकर ऐसे ही खयाल मन में उभरते हैं।
जवाब देंहटाएंनशा इंसान सिर्फ अपने नशे के लिए करता है ...
जवाब देंहटाएंग़म से इसका कोई वास्ता नहीं है ...
Its only a justification ..
लोग अपनी तन्हाईओं से इतना परेशां होते हैं तो उन्हें किसी दुसरे का सहारा बनना चाहिए ...
तुम किसी का सहारा बनो ...तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा ...