21 जुलाई 2010

'तू ऐसे आयेगी'



सरगोशियों से छूती हवा दिल के दरवाज़े
दस्तक सी दे रही हैं खामोश आवाजें

सितारे झिलमिला के क्या इशारे कर रहे
आहट तेरी या शज्र से पत्ते हैं गिर रहे

चाँद रुक गया है खिड़की के पार शायद 
उसे भी कहीं होगा तेरा इंतज़ार शायद 

उजालों से भर उसने दिये यूं सारे रास्ते 
जैसे बिछी हो चांदनी तेरे ही वास्ते   

मैं भी जलाए बैठा हूँ इक आस का दिया
ना बुझने दूंगा ख़ुद से वादा यही किया

मेरी दुआ कभी न कभी रंग लायेगी 
 ना लौट पाएगी तू कभी ऐसे आयेगी  |

- योगेश शर्मा

3 टिप्‍पणियां:

  1. मैं भी जलाए बैठा हूँ, इक आस का दिया
    ना दूंगा बुझने, ख़ुद से वादा यही किया

    आमीन ...

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  2. bahut sundar..........shabda rachana ati sundar

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  3. वहुत अच्छा लिखा है ..
    शब्दों का सटीक उपयोग दिखाई देता है

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