02 अगस्त 2010

'तुझे तुझ से मांग लूं'



जिस रोज़ सीढ़ियाँ तू दिल की उतर गया
उस पल से जैसे पूरा ज़माना ठहर गया
दुनिया फिर उस के बाद वैसी रही कहाँ
कुछ मैं बदल गया कुछ बदल गया जहां
रोका तुझे नहीं क्यों ये सोचता हूँ जब
अपने गुरूर को बहुत कोसता हूँ तब

हर रोज़ जुस्तजू रही मिल जाए तू कहीं
तो हाथ  थाम के तेरा जाने ना दूं कहीं

अहसास गलतियों के रोके जो थे कभी
आँखों के रास्ते उन्हें बह जाने दूं सभी

फ़लक-ऐ-नज़र पे तेरी फिर ख़ुद को टांग दूं
सोचा फिर एक बार तुझे तुझ से मांग लूं |


- योगेश शर्मा  

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया योगेश..


    सीड़ियाँ- सीढ़ियाँ

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  2. bahut sundar yogesh ji keep it up

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  3. बहुत अच्छी लगी यह ग़ज़ल.... और आप कैसे हैं? बहुत दिन हो गए आपसे बात किये हुए.... कल कॉल करता हूँ....

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  4. बेनामी3/8/10 8:45 am

    bahut hi sundar yogesh bhai....
    achhi panktiyaan...

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  5. अहम ही तो है जो कई अच्छे रिश्तों को एक दर्द में तब्दील कर देता है ...
    अच्छी रचना ...!

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