जिस रोज़ सीढ़ियाँ तू दिल की उतर गया
उस पल से जैसे पूरा ज़माना ठहर गया
दुनिया फिर उस के बाद वैसी रही कहाँ
कुछ मैं बदल गया कुछ बदल गया जहां
रोका तुझे नहीं क्यों ये सोचता हूँ जब
अपने गुरूर को बहुत कोसता हूँ तब
हर रोज़ जुस्तजू रही मिल जाए तू कहीं
तो हाथ थाम के तेरा जाने ना दूं कहीं
अहसास गलतियों के रोके जो थे कभी
आँखों के रास्ते उन्हें बह जाने दूं सभी
फ़लक-ऐ-नज़र पे तेरी फिर ख़ुद को टांग दूं
सोचा फिर एक बार तुझे तुझ से मांग लूं |
- योगेश शर्मा
बहुत बढ़िया योगेश..
जवाब देंहटाएंसीड़ियाँ- सीढ़ियाँ
bahut sundar yogesh ji keep it up
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह ग़ज़ल.... और आप कैसे हैं? बहुत दिन हो गए आपसे बात किये हुए.... कल कॉल करता हूँ....
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar yogesh bhai....
जवाब देंहटाएंachhi panktiyaan...
वाह ..बहुत बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंअहम ही तो है जो कई अच्छे रिश्तों को एक दर्द में तब्दील कर देता है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...!