12 नवंबर 2011

'अजनबी'



अपनों को इस कदर न जान लो कभी
अपने ही घर में ख़ुद से हो जाओ अजनबी

ये होंठ कई बार ख़ामोशी उगलते हैं 
हर बात कुछ कहे ज़रूरी नहीं कभी

ज़्यादा अलग नहीं हैं एक दुसरे से लोग 
ख़ुद की जुदा है सोच यही सोचते सभी


समझा सके  हम ख़ुद को किसी तरह 
 दुनिया के वास्ते हैं ये फ़लसफ़े सभी

 यूं तो भर दिया है हर ज़ख्म वक्त ने
दिल पर जमे हुए से कुछ नक्श हैं अभी


जाते हुए क़दमों के, निशाँ होंगे रास्तों पे
उनके ही सहारे आ जाना फिर कभी





- योगेश शर्मा


6 टिप्‍पणियां:

  1. अपनों को इस कदर न जान लो कभी !
    अपने ही घर में ख़ुद से हो जाओ अजनबी !!

    ये होंठ कई बार ख़ामोशी उगलते हैं !
    हर बात कुछ कहे ज़रूरी नहीं कभी !!

    सोचा कि कोई एक शेर select कर के कुछ लिखूं...लेकिन पूरी नज़्म ही इतनी सुन्दर और भाव पूर्ण है...कि मुश्किल में डाल दिया आपने..!
    अति सुन्दर...!!

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  2. बहुत अच्छी रचना है आपकी , हमारे ब्लॉग पर भी दर्शन दे श्रीमान
    हमारी कुटिया पर तो कोई आता ही नहीं है, आईये ना ............

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  3. आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
    इतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
    आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद्
    दिनेश पारीक
    http://dineshpareek19.blogspot.com/
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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  4. आज ही देखा आपका ब्लॉग | कई रचनाएँ पढ़ी | अच्छा लिख रहे हैं आप |

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  5. Renu ji bahut achcha laga jaan kar ki aapne samay nikal kar rachnaayein padhi aur wo aapko pasand aayin. Hausla aafzai ka shukriya.Yun hi prerit karti rahein.
    Maaf kijiye aaj hindi tankan arthat typing nahi ho pa rahi so Roman ya Hinglish mein type kar raha hoon.Some issue with the Blogger site. Aabhaar

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