कुछ दर्द सो रहे हैं ज़रा उन्हें जगाओ
सूरज बुझे हुये तो अर्सा हो गया है
सुलगती चांदनी से माहौल जगमगाओ
सुलगती चांदनी से माहौल जगमगाओ
ज़ख्म भर गए तो आवाज़ देंगे कैसे,
हो जाएँ हरे ऐसा मरहम कोई लगाओ
यादों के आईने पर ये धुंद वक्त की है
लम्हे दिखाई देंगे परतों को बस हटाओ
खोया कहीं नहीं है, करता है इंतज़ार
ख़ुद को एक दस्तक देकर कभी बुलाओ
कोरे ही रह गए हों जिनके तमाम हिस्से
किताब-ए-दिल को ऐसे पन्नो से भी सजाओ
शिद्दतों से जितनी दुनिया को आज़माया
कभी उसी हौसले से अपने को आज़माओ
ये ख्वाब रेत के तो वैसे भी टूटने हैं
कुछ महल साथ मेरे तुम भी कभी बनाओ
कोई साज़ छेड़ो ग़ज़ल गुनगुनाओ
कुछ दर्द सो रहे हैं ज़रा उन्हें जगाओ
कुछ दर्द सो रहे हैं ज़रा उन्हें जगाओ
खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंbahut sunder roomaniyat bhari nazm.
जवाब देंहटाएंयादों के आईने पर ये धुंद वक्त की है
जवाब देंहटाएंलम्हे दिखाई देंगे परतों को बस हटाओ ...
सच कह है ... गुज़रे समय में जाओ तो अनगिनत लम्हे सामने आ जाते हैं ... लाजवाब रचना ...
sundar... ati sundar!
जवाब देंहटाएंनव वर्ष पर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंनववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
sundar prastuti..aur kuch alag padne ke liye mila..aabhar
जवाब देंहटाएंमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
कोई साज छेडो....
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.