ज़रूरतों की भीड़ में हसरत नहीं मिलती
फ़ुर्सत ढूंढ़ने की भी फ़ुर्सत नहीं मिलती
दोस्त जैसे लोग ढेरों राह में टकराते हैं
हाथ मिल जाते हैं पर फ़ितरत नहीं मिलती
सोचता हूँ चेहरे को थोड़ा ढांक कर भी देख लूँ
ग़म की नुमाइश से अब राहत नहीं मिलती
रौंद कर बढ़ने के नुस्खे , छीन कर खाने के गुर
छोड़ने को और कुछ विरासत नहीं मिलती
दिल के टुकड़े रह गए हैं खंडहरों की शक्ल में
लाख़ खोजा पर कोई ईमारत नहीं मिलती
हर किसी के सच से परदे कान के फटने लगे
सच मिले हैं सैकड़ों हक़ीक़त नहीं मिलती
हर किसी के सच से परदे कान के फटने लगे
सच मिले हैं सैकड़ों हक़ीक़त नहीं मिलती
अजनबी चेहरों को भी हंस कर कभी देखा करो
सिर्फ अपनों से हमेशा चाहत नहीं मिलती
ज़रूरतों की भीड़ में हसरत नहीं मिलती
फ़ुर्सत ढूंढ़ने की भी फ़ुर्सत नहीं मिलती।
- योगेश शर्मा
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