नींदें तो ली हैं काफ़ी सोया नहीं कभी
आँखें हुयीं हैं नम नम रोया नहीं कभी
ढूंढा बहुत है ख़ुद को लोगों में हर तरफ़
पाया न हो भले पर खोया नहीं कभी
आबादियों के सेहरा में रिश्ते हैं खुश्क जैसे
लम्हों ने रूह को भिगोया नहीं कभी
उम्मीद की सुई से जीवन सियोगे कैसे
धागा भरम का जब पिरोया नहीं कभी
बचपन की नाव को हिचकोले दिए हैं काफ़ी
सैलाब ने उमर के डुबोया नहीं कभी
दिल की धड़कनों को एहसान सा लगे
साँसों को इस कदर तो ढोया नहीं कभी
दिल की धड़कनों को एहसान सा लगे
साँसों को इस कदर तो ढोया नहीं कभी
ख़ुद से ये सब्ज़ बाग़ हक़ीक़त कहाँ बनेंगे
उगता नहीं वो बीज जो बोया नहीं कभी
नींदें तो ली हैं काफ़ी सोया नहीं कभी....
नींदें तो ली हैं काफ़ी सोया नहीं कभी....
अती सुन्दर
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