अजनबी से घूमते हैं दोस्तों के शहर में,
सब तरफ शक्लें ही शक्लें और छाया है हुजूम,
पहचानना खुद को है मुश्किल भीड़ के इस शहर में,
तौलते लाखों दफा, तब कहीं लब खोलते हैं,
मासूमियत खो सी गयी है अक्ल के इस शहर में,
चेहरे हैं कितने जुदा पर आइने बिकते हैं कम,
अक्स सारे हैं एक जैसे कांच के इस शहर में,
सुबह कि पहली किरन से, रात के आखिर पहर तक,
दौड़ने का हुनर सीखा रफ़्तार के इस शहर में,
प्यास ने तड़पाया इतना पानी से रंजिश हो गयी,
आशियाँ आकर बनाया सेहराओं के इस शहर में |
- योगेश शर्मा (मुंबई की यादों से)
aapki taareef me to shabd kam padne lage hain....
जवाब देंहटाएंप्यास ने तड़पाया इतना, पानी से रंजिश हो गयी,
आशियाँ आकर बनाया, सेहराओं के इस शहर में |
waah...
Bahut Bahut Aabhaar, Dilip ji
जवाब देंहटाएंप्यास ने तड़पाया इतना, पानी से रंजिश हो गयी,
जवाब देंहटाएंआशियाँ आकर बनाया, सेहराओं के इस शहर में |
-बहुत खूब!! उम्दा रचा है!!
Shukriya Sameer ji
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