13 अप्रैल 2010

" मौत के बाद "

यह कुछ साल पहले की बात है जब में चेन्नई में रहा करता था | एक दिन सुबह, जब मैं घर से ऑफिस की ओर जा रहा था,रास्ते में एक जगह काफी भीड़ मिली | आगे रास्ता लगभग बंद सा हो गया था और लोग अपने अपने वाहनों से उतर कर कुछ देख रहे थे | सामने एम्बुलेंस भी खड़ी थी और पुलिस की गाड़ी भी |
एक साहब को रोक कर मैंने उस भीड़ की वजह पूछी तो उन्होंने बताया, कि एक ट्रक और स्कूटर में टक्कर हो गयी है, इस टक्कर में स्कूटर वाले की मौत हो चुकी है और मरने वाला एक ४५ - ५० साल का व्यक्ति है |


उस पल बहुत कुछ एक साथ दिमाग में शोर करने लगा | बहुत से ख्याल एक साथ आने लगे |कहीं उस स्कूटर वाले के परिवार के बारे में, कहीं जीवन की क्षणभंगुरता के बारे में ,जीवन की आपा धापी के बारे में , ट्रैफिक के बिगड़ते हालात और मेडिकल सुविधाओं के बारे में , वगैरह वगैरह |
साथ ही साथ एक ख़याल उस व्यक्ति के बारे में भी आया, जो अब इस दुनिया से उठ चुका था...इन सब परेशानियों से दूर, बहुत ऊपर ...... कि सड़क पर गिरा वो इंसान, मरते वक्त कैसा महसूस कर रहा होगा ?? | क्या उसको यह एहसास भी होगा कि वो अब शायद नहीं बचेगा?? .... क्या वो कुछ सोच भी पा रहा होगा??


ये कविता, बस उस एक पल की कल्पना है, जो एक दिन हमारे जीवन में भी आयेगा पर जिसकी अभिव्यक्ति हम शायद नहीं कर पायेंगे | मैंने कोशिश करी है, उस व्यक्ति की मौत के उस लम्हे को जीने की,यह जानते हुए भी कि मौत को जीना नामुमकिन है ,और वो भी किसी और की |पर ये तो कोरी कल्पना है, एक फेंटेसी है, भले ही थोड़ी अजीब ही क्यों ना हो |

                                                      " मौत के बाद "



                                                           








जाने कब का निकला घर से,
जल्दी लौटूं थी ये चाह,
पलके गाड़े दरवाज़े पर,
कोई देखता होगा मेरी राह


पास ही था, मंजिल के बस,
आया कुछ आँखों के आगे,
एक चोट लगी ,मैं गिरा ज़मीन पे,
दिखा नहीं कुछ इसके आगे,


सांस जहाँ थी, वहीँ रुक गयी,
वक्त वहीँ का वहीँ जम गया,
आँख खुली की खुली रह गयी,
सारा आलम जैसे थम गया,


आवाजों का शोर रुक गया,
रह गया खाली सन्नाटा,
चारों तरफ बस जैसे छा गया,
गहरा.... काला .....सन्नाटा


न शिकवा कुछ , न है मायूसी,
फिक्र नहीं अब , न कोई चिंता,
कुछ खोने का दर्द नहीं,
याद रहा न कोई रिश्ता,


कुछ पाने कि होड़ बची न,
कोई जीत नहीं, कोई हार नहीं,
कोई याद करे, कोई आँख बहे,
अब ऐसी कुछ दरकार नहीं,


कितनी ख़ामोशी...कितना है सुकून,
हर पल से हूँ कितना आज़ाद,
लौटूं न कभी इस दुनिया में,
ख्वाहिश है यही बस ये फ़रियाद

- योगेश शर्मा

6 टिप्‍पणियां:

  1. jindgi bhi pta nahi kaise-kaise anubhav karva deti hai ji,
    badi gehraai se mehsus kiys or abhivayact kiya ji aapne...

    kunwar ji,

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  2. aisa sabhi ke jeevan me hona hai aur koi isko us waqt abhivyakt nahin kar paayega.. ek katu yatharth punah yaad dilaane ke liye aabhar Yogesh ji.

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  3. Kunwar ji tathaa Deepak ji..itni pyaari abhivyaktiyon ke liye bahut bahut aabhaar

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  4. ओशो के कई सक्रिय ध्यान विधियों से इस प्रकार का आनन्दमय अनुभव होता है...पर कुछ भी कहिये मरने का भी अपना मज़ा होता है.. बढ़िया लिखा आपने...."

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  5. बहुत गहरे उतार कर ले गये आप सच्चाई में...

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  6. योगेश शर्मा साहेब आप की इस कविता से हर इंसान की आँख खोली जा सकती है.आपने बेहतरीन अंदाज़ में मौत को जिया है.

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