'भूख'
भूख अपनी हो, या हो अपनों की,
तड़पाती है, तो इख्तेयार नहीं रहता,
छीन लेती है ऐसे, ये होश ओ हवास,
आदमी, फिर आदमी नहीं रहता,
जीती ज़मीन, जीते हैं समंदर कितने,
आदमी ,भूख से लड़कर बस नहीं जीता ,
इसकी मुट्ठी में कैद हो गया, वरना
आदमी कब का, खुदा बन गया होता
- योगेश शर्मा
बहुत बढिया रचना!! बधाई।
जवाब देंहटाएंवाकई शानदार लिखा ...."
जवाब देंहटाएंPranav ji and Bali Saab...aabhaar
जवाब देंहटाएंbahut khoob likha...aajkal kisi hippo brand ka ad dekha ...aapki rachna padh uski yaad aa gayi...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
बहुत प्यारी रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
जीवन की विडंबनाओ को दर्शाती के उत्तम रचना...
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